धर्मशास्त्रों में तीर्थराज प्रयाग: एक अनुशीलन

  • छोटे लाल यादव
  • डाॅ0 मन्जू यादव

Abstract

धर्मस्य शास्त्रमिति धर्मशास्त्रम्’’ इस वाक्य के अनुसार धर्मशास्त्र का अर्थ धर्म के द्वारा राजा का प्रजा पर ऋणदान निक्षेप आदि व्यवहार पदों का निर्णय करते हुए अनुशासित करने का माध्यम कहा गया है।1 धर्मशास्त्र दो शब्द, ‘धर्म’ और ‘शास्त्र’ के योग से बना है। यहाँ धर्म और शास्त्र में दोनों शब्द विचारणीय है। ‘धर्म’ शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता हैं संस्कृत में ‘धर्म’ के अनेक अर्थ हैं। ‘धर्म’ शब्द ‘धृ´’ धारणे धातु से मन् प्रत्यय होकर निष्पन्न हुआ हैं। जिसका अर्थ पालन करना, आलम्बन लेना, धारण करना आश्रय देना है।2 शास्त्र शब्द ‘शासु’ धातु से ‘त्रयल्’ प्रत्यय के सहयोग से निष्पन्न है। जिसका अर्थ अनुशासन या उपदेश करना होता है।3 अतः इन दोनों शब्दों का अर्थ अनुशासन का पालन करना, अनुशासन बनाये रखने में आलम्बन देना है। ऋग्वैदिक ऋचाओं में इस शब्द का प्रयोग विशेषण या संज्ञा के रूप में छप्पन बार हुआ है।4 ऋग्वेद में इस शब्द का प्रयोग पुलिंग में किया गया है। लेकिन अन्य जगह यह नपुंसकलिंग में या उस रूप में जिसे हम पुल्लिंग या नपुसंलिंग दोनों ही समझ सकते है।
How to Cite
छोटे लाल यादव, & डाॅ0 मन्जू यादव. (1). धर्मशास्त्रों में तीर्थराज प्रयाग: एक अनुशीलन. Academic Social Research:(P),(E) ISSN: 2456-2645, Impact Factor: 6.209 Peer-Reviewed, International Refereed Journal, 9(4). Retrieved from https://www.asr.academicsocialresearch.co.in/index.php/ASR/article/view/825